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महान वैज्ञानिक चंद्रशेखर वेंकट रमन के बारे में जानने के लिए क्लिक करे


महान वैज्ञानिक चंद्रशेखर वेंकट रमन प्रकाश के प्रकीर्णन और रमन प्रभाव की खोज के लिए नोबेल पुरस्कार पाने वाले पहले एशियाई और अश्वेत भौतिक वैज्ञानिक सर सीवी रमन आधुनिक भारत के महान वैज्ञानिक माने जाते हैं।
सीवी रमन का जन्म : दक्षिण भारत के त्रिचुनापल्ली में पिता चंद्रशेखर अय्यर व माता पार्वती अम्मा के घर में 7 नवंबर 1888 को जन्मे भौतिक शास्त्री
चंद्रशेखर वेंकट रमन उनके माता पिता के दूसरे नंबर की संतान थे। उनके पिता चंद्रशेखर अय्यर महाविद्यालय में भौतिक विज्ञान के प्रवक्ता थे।
रमन की पढ़ाई और नौकरी : बेहतर शैक्षिक वातावरण में पले बढ़े सीवी रमन ने अनुसंधान के क्षेत्र में कई कीर्तिमान स्थापित किए। भारत में विज्ञान को नई ऊंचाइयां प्रदान करने में उनका काफी बड़ा योगदान रहा है।
प्रेसीडेंसी कॉलेज मद्रास से भौतिक विज्ञान से स्नातकोत्तर की डिग्री लेने वाले श्री रमन को गोल्ड मैडल प्राप्त हुआ। भारत सरकार ने भी विज्ञान के क्षेत्र में उल्लेखनीय योगदान के उन्हें भारत रत्न सम्मान से नवाजा। साथ ही संयुक्त राष्ट्र संघ द्वारा दिए जाने वाले प्रतिष्ठित लेनिन शांति पुरस्कार से उन्हें सम्मानित किया गया।
वैज्ञानिक के तौर पर दुनियाभर में जाने गए रमन की गणित में जबर्दस्त रूचि थी और उनकी पहली नौकरी कोलकाता में भारत सरकार के वित्त विभाग में सहायक महालेखाकार की थी। देश को आजादी मिलने के बाद 1947 में भारत सरकार ने उन्हें राष्ट्रीय प्रोफेसर नियुक्त किया था।
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सर चंद्रशेखर वेंकट रमन के पिता गणित एवं भौतिकी के अध्यापक थे इसलिए उनका लालन-पालन बिल्कुल उसी माहौल में हुआ। उनकी मां पार्वती अम्मल घरेलू महिला थीं। रमन बचपन से ही मेधावी थे। उन्होंने महज 11 वर्ष की आयु में उच्चतर माध्यमिक की पढ़ाई पूरी कर ली लेकिन विदेश जाना शायद उनकी किस्मत में नहीं था और स्वास्थ्य खराब होने के कारण वह उच्च शिक्षा के लिए विदेश नहीं जा सके। उन्होंने 1902 में मद्रास के प्रेसीडेंसी कॉलेज में दाखिला लिया और 1904 में बीएससी (भौतिकी) की डिग्री हासिल की।
वर्ष 1907 में उन्होंने एमएससी की डिग्री हासिल की। फिर कोलकाता में भारत सरकार के वित्त विभाग में सहायक महालेखाकार के तौर पर सेवारत हुए। दफ्तर के काम से फुरसत मिलने के बाद वह इंडियन एसोसिएशन फॉर द कल्टिवेशन साइंस की प्रयोगशाला में प्रयोग करते थे। इसी परिश्रम के पारितोषिक के तौर पर उन्हें नोबेल पुरस्कार मिला।
रमन ने 1917 में सरकारी सेवा से इस्तीफा दे दिया और कोलकाता विश्वविद्यालय में भौतिकी के प्रोफेसर बन गए। इस दौरान उन्होंने आईएसीएस में अपना अनुसंधान जारी रखा। उन्होंने वर्ष 1929 में भारतीय विज्ञान कांग्रेस के 16 वें सत्र की अध्यक्षता भी की। रमन को वर्ष 1930 में प्रकाश के प्रकीर्णन और रमण प्रभाव की खोज के लिए भौतिकी के क्षेत्र में प्रतिष्ठित नोबेल पुरस्कार से सम्मानित किया गया।
इसी पर रमन स्पेक्ट्रोस्कोपी आधारित है और उनके सिद्धांत का इस्तेमाल कर दुनिया के कई अन्य वैज्ञानिकों ने नए सिद्धांत प्रतिपादित किए। रमन प्रभाव पर आज भी काम हो रहा है।
वह वर्ष 1934 में बेंगलुरु स्थित भारतीय विज्ञान संस्थान के निदेशक बने। रमन ने स्टिल की स्पेक्ट्रम प्रकृति पर भी काम किया। उन्होंने नए सिरे से स्टिल डाइनेमिक्स के बुनियादी मुद्दों पर काम किया। उन्होंने हीरे की संरचना और गुणों पर भी काम किया। अनेक रंगदीप्त पदार्थो के प्रकाशीय आचरण पर भी शोध किया। वह वर्ष 1948 में आईआईएस से सेवानिवृत्त हुए। सेवानिवृत्ति के बाद उन्होंने बेंगलुरू में रमन रिसर्च इंस्टीटयूट की स्थापना की। उन्हें विज्ञान के क्षेत्र में योगदान के लिए अनेक पुरस्कारों से सम्मानित किया गया।
सीवी रमन की उपलब्धि : भौतिकी विशेषज्ञ सर सीव. रमन द्वारा 'रमन इफैक्ट' की खोज के उपलक्ष्य में 28 फरवरी को राष्ट्रीय विज्ञान दिवस के रूप में मनाया जाता है। उन्होंने ही पहली बार तबले और मृदंगम के संनादी (हार्मोनिक) की प्रकृति का पता लगाया था।
विज्ञान के क्षेत्र में योगदान के लिए अनेक पुरस्कारों से सम्मानित किया गया। उन्हें वर्ष 1929 में नाइटहुड, वर्ष 1954 में भारत रत्न तथा वर्ष 1957 में लेनिन शांति पुरस्कार से सम्मानित किया गया। विज्ञान के क्षेत्र में नोबेल पुरस्कार प्राप्त करने वाले सीवी रमन पहले भारतीय वैज्ञानिक बने।
'रमन प्रभाव' की खोज भारतीय भौतिक शास्त्री सर सीवी रमन द्वारा दुनिया को दिया गया विशिष्ट उपहार है। इस खोज के लिए उन्हें विश्व प्रतिष्ठित पुरस्कार नोबेल पुरस्कार से सम्मानित किया गया था और भारत में इस दिन को राष्ट्रीय विज्ञान दिवस के रूप में मनाया जाता है।
'रमन प्रभाव' विश्व को दिए गए इस अनूठी खोज के बाद ही उन्हें वर्ष 1930 में प्रतिष्ठित नोबेल पुरस्कार से सम्मानित किया गया था।
पूर्व राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम जहां वीणा वादन कर अपने तनावों से मुक्ति पाते हैं और प्रख्यात वैज्ञानिक अल्बर्ट आइंस्टीन वायलिन बजाते थे, वहीं रमन की रूचि वाद्ययंत्रों में दूसरे तरीके की थी।
उन्होंने संगीत वाद्य यंत्रों के एकास्टिक पर काम किया और वह ऐसे पहले व्यक्ति थे जिन्होंने भारतीय वाद्य यंत्र तबला तथा मृदंगम के संनादी (हार्मोनिक) प्रकृति का भी पता लगाया था। इतना ही नहीं शायद इस वैज्ञानिक के दिमाग में भारत में आने वाले समय में व्यापारिक आवश्यकताओं का खाका भी था और उन्होंने डॉ. कृष्णमूर्ति के साथ मिलकर
त्रावणकोर मैन्युफैक्चरिंग लिमिटेड
कंपनी बनाई। पिछले 60 सालों में इस कंपनी के दक्षिण भारत में चार कारखाने स्थापित हुए हैं।
विज्ञान की सेवा करते करते 21 नवंबर 1970 को बेंगलुरू में उनका निधन हो गया।

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